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असमर्थ होते हुए / शशि सहगल

मैंने कितना चाहा
मुक्त हो सकूँ
अपने ही बोझ से
पर लगता है
रुके हुए क्षणों का बोझ
मुश्किल है उतारना।
शायद
शब्द ढो सकते हैं
मेरा बोझ
पर बिखर गये हैं
शब्द और
असमर्थ है मौन।