कई बार दिमाग के अन्धेरे में एक साथ
अनगिनित प्रश्न कौंधते हैं
कुछ चमकता है अक्सर
और बहुत कुछ रह जाता है अन्धेरे में
अन्धेरे के आवरण से ढकी हैं
सबसे सुन्दर चीज़ें
सबसे सुन्दर क्षण बह गए गलियारों में उपेक्षित
सभी पौधों को सामान कतार में
एक साथ नहीं रोपा गया
विश्व की हरीतिमा का भविष्य हैं जो
उनमें से अधिकांश को न पर्याप्त जगह मिल रही है
और न खाद-पानी अपेक्षाकृत
समुचित उन्नति के दावों के बीच
उदास और मुरझा रही शुरूआत
प्रश्नों की झड़ी लगा रही है
पर उँगलियाँ भी कोई चीज़ हैं
जिन्हें कानों में डालकर बचा जा सकता है
वहाँ से गुजरते समय
अपनी ज़िम्मेदारी को धूल की तरह झटकारते हुए