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असम्भव संस्कृत में / अशोक वाजपेयी

वह न अपना नाम है,
न ही अपना पता,
वह परे है
नाम और पते से।

उसकी आँखें नहीं जतातीं
वह सड़क जिस पर वह रहती है,
उसकी हँसी कोई
नम्बर नहीं बताती,
उसके हाथ नहीं जानते वर्णमाला,
उसके पाँव
किसी शब्द के हिज्जे नहीं कर सकते।

वह जो उसे खोजता है
भाषा में,
व्यर्थ खोज रहा है-
वह भाषा से बाहर बसती है :
शब्दों के बीच की चुप्पियों में,
संकोच के विरामों में,
प्रेम की असम्भव संस्कृत में।