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असली क्रांति / रणजीत

घोड़े पर सवार एक चमार
चाबुक बरसा रहा है
घोड़े से उतार दिये गये एक ठाकुर साहब पर
सचमुच एक क्रान्ति आ गयी है
पैदल सवार हो गये हैं
और सवार पैदल
उन्होंने अपनी जगहें बदल ली हैं
पर घोड़े और चाबुक?
वे ज्यों के त्यों हैं।
असली क्रान्ति तो वह होगी जिसमें
न घोड़े रहेंगे, न चाबुक
सब पैदल होंगे अपने ही पांवों पर चलते हुए।