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असह्य / विष्णु खरे

दुनिया भर की तमाम प्यारी औरतो और आदमियो और बच्चो
मेरे अपने लोगो
सारे संगीतों महान कलाओं विज्ञानों
बड़ी चीज़ें सोच कह रच रहे समस्त सर्जको
अब तक के सारे संघर्षों जय-पराजयों
प्यारे प्राणियो चरिन्दो परिन्दो
ओ प्रकृति
सूर्य चन्द्र नक्षत्रों सहित पूरे ब्रह्माण्ड
हे समय हे युग हे काल
अन्याय से लड़ते शर्मिंदा करते हुए निर्भय (मुझे कहने दो) साथियो
तुम सब ने मेरे जी को बहुत भर दिया है, भाई
अब यह पारावार मुझसे बर्दाश्त नहीं होता
मुझे क्षमा करो
लेकिन आख़िर क्या मैं थोड़े से चैन किंचित् शान्ति का भी हक़दार नहीं