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अस्तित्व और सुंदरता / महेश चंद्र पुनेठा

अनेक पत्थर
कुछ छोटे-कुछ बड़े
लुढ़क कर आए इस नदी में
कुछ धारा के साथ बह गए
न जाने कहाँ चले गए

कुछ धारा से पार न पा सके
किनारों में इधर-उधर बिखर गए
कुछ धारा में डूब कर
अपने में ही खो गए
और कुछ धारा के विरूद्ध
पैर जमा कर खड़े हो गए

वही पत्थर पैदा करते रहे
नदी में हलचल
और नित नई ताज़गी
वही बचा सके अपना अस्तित्व
और अपनी सुंदरता ।