ककरासँ कहबै के पतियेतै अपने तरंगमे भीजल दुनियाँ
बड़ अथाह स्वार्थक अर्णव ई शुभ बनि गेलै लोलुप बनियाँ
शोणित बोरि-बोरि टाट बनएलौं
खर खोड़ि टिटही लऽ गेलै
फाटल आॅचरसँ कोना कऽ झॅपबै
खाली चिनुआर बेपर्द भऽ गेलै
व्याल दृष्टिसँ राकस गुड़कए चिहुकि-बिचुकि कऽ कानए रनियाँ
कर्मक नाहमे भेलै भोकन्नर
वामे हाथे पानि उपछलौं
भदवरिएमे पतवारि हेराएल
दहिना हाथक लग्गा बनएलौं
सभटा आङुर पानि खा गेलै, कोना बजतै दर्दक हरमुनियाँ
कछेरमे विषनारि उगल छै
थलथल पॉक पएर धॅसि गेलै
अन्हार मोनिमे कछमछ कऽ रहलौं
बिनु जाले टेंगड़ा फॅसि गेलै
कोनो कऽ हमरा बाहर करतै नोर चाटि हहरए सोनमनियाँ...
किछु छिद्दीक तरमे दबि कऽ
पंद्रह अाना अकसक कऽ रहलै
भारी भेल कुकर्मक सोती
ओकरे धारमे गंगा बहलै
घनन दरिद्रा तांडव करतै,
अस्तित्वक- प्रश्न बनल पैजनियाँ...