न द्वार खुला
न दीवार गिरी
हम
मन की मछली
मन के तालाब में मारते रहे
अहं का जाल
स्वयं को
छलने के लिए
पसारते रहे
रचनाकाल: १२-१०-१९७०
न द्वार खुला
न दीवार गिरी
हम
मन की मछली
मन के तालाब में मारते रहे
अहं का जाल
स्वयं को
छलने के लिए
पसारते रहे
रचनाकाल: १२-१०-१९७०