अहिंसा के पुजारी बापू / पद्मजा बाजपेयी

प्रेम की पावन धरा, श्रीकृष्ण की ब्रजभूमि में,
तुलसी, कबीर, नानक, भूमि महावीर के निर्वाण की,
राधा, सीता, मीरा, सेन्या रज़िया-लक्ष्मीबाई खेली
अपने प्राणों की आहुति दे सजा-सवांर गई
समय का यह चक्र कैसा? चकित है इतिहास जिसका,
 अतृप्त झोली पसारे अश्रु बिन्दु समेटता है
उत्पात ही है लक्ष्य जिनका, बोझ वे अब बन गये है,
वीरानगी सहचरी उनकी, शान्ति से है दुश्मनी,
आत्मा से ही होकर, साँस केवल चल रही है,
विध्वंस ही है धर्म जिनका, कर्म जिनका,
उन्हे शान्ति का पाठ पढाने, हे अहिंसा के पुजारी,
देश की गरिमा बढ़ाने, प्यार की बंसी बजाने,
राह से भटके पथिक को उपदेश देकर फिर जगाने,
एक बार पृथ्वी पर पधारो, डगमगाती नाव को आकर बचा लो।

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