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अहिल्या / कामिनी कामायनी

भेंट फेर भेल छल गौतम के
अहिल्या सवएह कायावएह रूप
आईयो धरि तरासल
वएह जौवन
नदी के धार सन सनसनाइत
मुदा आंखिक भाखा एकदम भिन्न
नहि कोनो लोचनहिं कत्तों संकोच
एक गोट नब ऊर्जानब तेज स भरल अवस्स
चौंधिया गेलाओ ओहि तेज स
जुग कतय स कतयचलि आयल
आत्म दर्शन मे ओझरायल
कोना अनभिज्ञ रहि गेला ओ
अही भेद स।धखाइतघबड़ाइत
कहुना अपन परिचय ल बढला
मोंन पाड़ूगौतम हमपरमेश्वर अहांक पहिला
वाक जेना मुंह मे अटकि गेल
आ जुबती आगा बढि क लपकि लेल
फेरसभरैत बजलीबड़ मृदु बोल
हमरोछल ई अभिलाषा अनमोल
की कोनो जुग मे आहाँ के देखितौ
आ आहाँ के कद स अपन काया नपितौ
सरापक दुनिया मे कत्तेक बुलब टहलब
की एखनि धरि अहाँ के किओ नहि बुझौलक
हम त कहब ज्ञानी बनब त बनू
अहंकार के परंच पचेनेओ सीखू
जानू देह गेह के निर्धारित सीमा
आ निर्दोख के माफ केना भी सीखू
तखन जाके अहांक तप सब सफल हैत
कएक जनमक उपरांत फेर हमरा स मिलन हैत
आब हम वृथा कोनो जोड़ स नै बनहेब
पाथरि बनि अपन जीबन नहिं गमायब
बड़ पढेलहू धरम अधरमक पोथी
जेकर थाह आय धरि नै किओ पायल
फटकार सुनि हुनक ज्ञान जागल
कएक जुगक अनहार भागल
धड़ खसौने ऋषि जायत रहला
पड़ल मों न केलहा सबटा पिछुलका।
कलिजुग मे होबैत छै सबहक इंसाफ
दोषी के दंड आ निर्दोख के खून माफ।