रावळ सूं
पांच-सात कोस
उतरादी सींव माथै
बसेड़ै चक
23-के.डी.
उपाळै
जांवतां थकां
कीं नीं लखायो
नुंवो
हां ! अचरज
अवस हुवै हो कै
म्हारलै लारलै
गांव जिस्यो ई हो
बठै री माटी रो रंग
घास-फूस
पेड़-पौधा
अर फसलां/अैन सागी रा सागी
म्हनै कीं नीं
लाग्यो इस्यो
जको बण सकै हो
कविता रो विसै
हां ! म्हारी पगडण्डी माथै
कपास चुगती
जोध जुवान छोरी
लाजां मरती
म्हारे कानी
देख’र ई नीं देख्यो
तो म्हनै लाग्यो-
ईं रै पछतावै माथै
लिखी जा सकै
कविता
पण बा नीं ही
समाजू सरोकारां री
कोई बड़ी कविता/ई सारू
मैं आ बात अठै ई
छोड़ दी
रात नै सरहद माथै
चसता लोटियां में ई
नी दिखी म्हनै
कोई कविता
दिनुंगै भाई रो
खेत अर खेत में
रेत सागै
भतीजां री करेड़ी
घोल देख’र
जरूर लाग्यो कै
अठै बण सकै बात
पण दिन चढे़ जद
बां रा इंद्र भगवान-
नैरी ओवरसी सा’ब
फटफटियै माथै चढ़’र
गांव पधार्या
अर पाणी बदलै
सरेआम
पीसा-पीसा
करण लाग्या
तो म्हैं सोच्यो
हां ! आ है
असली कविता
पण कुण पढ़सी
आनै भूंडती कविता
अठै भंणाई-गुणाई
अर दूजी महताऊ जरूरतां रो तो
दूर-दूर ई नीं है सूभीतो
बडै-बडै सौ’रां रा
ठावा-ठावा लोग
पढ़ ई लेसी तो के है
कीं करता-धरता लोगां सूं तो
आप रा पचड़ा ई नीं सळटै
सुवार्थ रो
काच फिर्योड़ी आख्यां नै
के दिसै कविता ?