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अेक सौ अड़ताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा

म्हैं मांस रो पिंड
म्हारी के ओळखाण
छोड अेक नाजोगी भाखा
दिखावती फिरै जकी दिन-भर आखा

फेरूं भी स्याणा काणा हूग्या
हूंवता थकां सुजाखा
समझै कुण जूनी फड़द रो मरम
कमेड़ी ज्यूं कूकती फिरै रिंधरोही मांय
सत नीं सूझै मायड़ री सुरता नैं
म्हारी नस-नाड़्यां रै लोही मांय

बा कुरळावै
पण असंवैधानिक नैं हक कुण दिरावै।