मुसाफरी मांय
सबद सवाल भोत करै
-कमाल भोत करै
भांत-भांतीला जका मन नैं भरमावै है
पण आपणै आ बात कद समझ आवै है
कै मुसाफरी तो मुसाफरी है
बठै किसी टाबरी है
जीं रै मांय रिस्ता-नाता सोधां
अर बे-वजह स्मरती नैं खोदां
कै अै मुसाफर कठैई मिल्या है
पुहुप प्रेम अै कदैई तो खिल्या है
दरअसल :
ओ प्रेम ई भाखा री ऊरमा है
पण अबै कठै साचा सूरमा है
इण बात रो सबद
-मलाल भोत करै।