रंगरोळी कर्यां जे हुवै कविता
-तो राम अर सीता
क्यूं लेवता बनवास, हूंवता थकां आस
पण बांनै दिसै हो भाखा रो परकास
जको रावण री नाभ मांय पळका मारै हो
चौरासी री जूण नैं गोडां हाथ मार ललकारै हो
पछै श्रीराम क्यां तांई अवतार लियो हो
बां सदियां पैली सभ्यता नैं तार लियो हो
बा री बा बात म्हांनै लखावै है
पण किसी कविता बनवास तांई जावै है
अठै तो सै बैठ्या है, हाथ मांय लेयÓर
-फीता
रंगरोळी कर्यां जे हुवै कविता!