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अेक सौ सैंताळीस / प्रमोद कुमार शर्मा

साधो रैयी
बाधो रैयी
अळबाद तगड़ी है भाखा रै साथै
मजाक करै स्याणा ई आखा रै साथै
आखा-
कविता मांय परगट हुवै
पण कविता भी कांई करै
जे साम्हीं मरघट हुवै

अबकै मरघट मांय सबद जगाणो है
समै नैं भाखा रो साच बताणो है
जको-
संवेदन री बत्ती गुल कर्यां खड़्यो है
अबकै बीज रै मांयनै ई
डाको गजब पड़्यो है