म्हारो डी.अेन.अे. कठै गयो
कठै गयो गुरु गोरख रो ग्यान
कळपूं काया नैं
साच कैवूं माया नैं
किण विध करूं कविता रो बखाण
परेसान....!
मन परेसान होयÓर मारै गुळाटी
कठै गई! कठै गई! मुलक री माटी
जकी रै मांय भाखा रा बीज ऊगता
अरे!
सईका बीतग्या चालतां
-कठैई तो पूगता!