अपने दिन रात हुए उनके
क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ।
सुलगी अनुराग की आग वहाँ
जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥
किससे कहिए अपनी सुधि को
मन है न यहाँ तन है न वहाँ।
अब आँख नहीं लगती पल भी
जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥
अपने दिन रात हुए उनके
क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ।
सुलगी अनुराग की आग वहाँ
जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥
किससे कहिए अपनी सुधि को
मन है न यहाँ तन है न वहाँ।
अब आँख नहीं लगती पल भी
जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥