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आँखों में बरसातें / कृष्णा वर्मा


27
सह न पाया
तुमसे मिली ईर्ष्या
नफ़रत दुत्कार,
लौटा रहा हूँ-
शब्दों में पिरोकर
लय-तुक के साथ।
28
होती नहीं यूँ
लगती है ज़िंदगी
दूर से ही हसीन
होंठों पे हँसी
आदमक़द दर्द
सीने में हैं आसीन।
29
वक़्त का शाप
दफ़न हैं रौनकें
बर्फ़ हुए जज़्बात
कोरों पे खड़े
गूँगे आँसू कहते-
दर्द किसे बताएँ?
30
नींद बेज़ार
बैठी सोच आँखों में
दिल हुआ अज़ार
कैसा सजाती
हमारी ख़ुदगर्ज़ियाँ
ये मौत का बाज़ार
31
करवटों में
चुभती बीती बातें
सोने नहीं देती हैं
छाया सन्नाटा
फटे दिल का आसमाँ
आँखों में बरसातें।
32
तत्पर रहा
बनने के फेर में
मचा दिया अँधेर
जम के मिटा
फेंटा जब वक़्त ने
ख़्वाहिशें हुईं ढेर
22
ख़ाली हैं खीसे
छाई हैं उदासियाँ
ग़ुरबतों का दौर
सिक्के टटोलें
हाथ देख जेब में
उँगलियों के पोर।
34
आसमान की
करो न कभी हद
भले कहे दुश्मन
विचार करो-
बात हो पते की तो
कभी न करो रद्द।