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आँख्यां सूं छळकै / संजय आचार्य वरुण

हेत किणी रौ
बण के पाणी
आँख्यां सूं छळकै।
नैणां रा सुपना
मुरझावै
जागै रात्यां
नींद न आवै
याद किणी री
आँसूं बण के
आँख्यां सूं छळकै।
दुखतौ मन अर
थकती काया
बीत्या दिन क्यूं
फेर न आया
बात किणी री
बण के पाणी
आँख्यां सूं छाळकै।
सरणाटौ सब
ओर लखावै
मन ने कोई
चीज न भावै
दूर किणी सूं
हिवणै रौ दुख
आँख्यां सूं छळकै।