Last modified on 10 अगस्त 2012, at 16:59

आँख को आँख / अज्ञेय

ओ हँसते हुए फूल!
इधर तो देख
फूल की आँख तुझे देखती रही अनझिप
तेरी आँखों में अब
समा जाने दे उसे
ओस की बूँदों से घुली हैं उसकी आँखें
अरे, आँखों से ही तो दीप्ति पाता है प्रकाश
जिसमें रूप लेती है दुनिया!
आँख से मिलने दो आँख
आँख को आँख
देखने दो!