आँख में आँसू दिये किस ने
ये बिना कारण निकलते हैं ।
दुक्ख तो है हृदय की थाती
जोकि मैं ने जन्म से पाई
जब कहीं बदली उठी ग़म की
नयन में वर्षा उतर आई ।
पाँव मेरे जंगलों भटके
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
दुक्ख अपना ही लगा पर्वत
दूसरे का दुख लगा राई
सब बराबर हो गये लेकिन
जब प़लय की घड़ी लहराई ।
डूबते तैराक ही अक्सर
तमाशाई तो सँभलते हैं ।
स्वर्ग उतरा राजपथ पर है
नरक जनपथ हो गया अब तो
देश भक्षक खा रहे सब कुछ
देंश रक्षक सो गया अब तो ।
जन कभी हँसते कभी रोते
पर वही दुनिया बदलते हैं ।