आँगन के पार
द्वार खुले
द्वार के पार आँगन !
भवन के ओर-छोर
सभी मिले—
उन्हीं में कहीं खो गया भवन ।
कौन द्वारी
कौन आगारी, न जाने,
पर द्वार के प्रतिहारी को
भीतर के देवता ने
किया बार-बार पा-लागन ।
आँगन के पार
द्वार खुले
द्वार के पार आँगन !
भवन के ओर-छोर
सभी मिले—
उन्हीं में कहीं खो गया भवन ।
कौन द्वारी
कौन आगारी, न जाने,
पर द्वार के प्रतिहारी को
भीतर के देवता ने
किया बार-बार पा-लागन ।