पहली बार, आँच जब आग बनी
मैंने भी, तूने भी उसकी आवाज़ सुनी
और/ पूस की रात के खिलाफ इकट्ठे होकर
आग के गिर्द नाचने लगे
दूसरी बार, आँच जब आँख बनी
गाँव के ठाकुर ने उसकी आवाज़ सुनी
उसे सोने की पालकी में सजाया
आग को उसमे बिठवाया
और हवेली के भीतरी कक्ष में कैद कर लिया
आखिरकार, तीसरी बार, आँच जो आग बनी
शब्दकार आया -- आग का गीत उसने प्राणों से गाया
और - आग के अनुराग को हर दिल में बीज दिया।
( 'पृथ्वी की आँच ' के कवि तुलसी रमण के लिए )