लोकतँ बुझैत अछि-
बुड़िबक छै, बुझतै की।
मुदा अहिं कहू भला-
दुनियाँमे एखन धरि
बुड़िवको अपनाकेँ बुड़िबक की बुझलक अछि?
केहन केहन बोद्धा आ केहन केहन योद्धा
जे चारूनाल चित्त भेला
पन्ना उनटाउ ने इतिहासक
आ देखि लियऽ।
हमतँ दोरूक्खा पर घात लगा रहलहुँ
जे आँठीकेँ छोड़ि देबै,
गुद्दे हँसोथि लेब।
कोमहर छै आँठी आ कोमहर छै गुद्दा
से अँटकर लगयबामे
हम कने हूसि गेलहुँ।
रामजीक प्रताप
लखनलाल जीक बुधियारी
हमरा अनचोकेमे आँखि चोन्हराय देलक
बुझलहँु अजीत केर अर्थ आब हरि थिकै,
नय समास भेल छै से पहिने बुझलिऐ नहि।
तेँ ने हम हारि गेलहुँ
धोपचटमे जितला ओ।
देखू आ स्वादि-स्वादि
गुद्दा सिसौहै छथि
एमहर हम घूमि-घूमि
आँठी गनैत छी।