आँधी में
अमरूद ने अपनी सुगन्ध तक फेंक डाली है
उसे पता रहे न रहे
जिसके पास कहानी नहीं थी, अब है
मृत्यु को टरकाने का एक बहाना हवा में है
और मृत्यु की टोह लेने का
मैं भी सुगन्ध के किस चक्रव्यूह में अनिश्चित
कहाँ, कितना इत्यादि
और कैसे निकलूँ हँसी-हँसी में
इस कविता से आख़िरकार