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आँसुओं का टूटना / संजय शेफर्ड

जिन आँखों में सपने पलते हैं
उन्हीं आँखों के कोर में ही कहीं होते हैं आँसू भी
सपनों का टूटना
आँसूओं का निर्झर बहते जाना
जीवन के बियाबान पलों में खालीपन पैदा करते रहना
हमारी नियति में हो यह जरुरी तो नहीं
पर जरुरी है
सपनों का पलना, उम्मीदों का टूटना
और आंसुओं का बहना भी
क्योंकि आँखों का तर होना निहायत ही जरूरी है
जरूरी है; ऑखों के कोर में थोड़े से पानी का बचा होना…
ताकि सूखे होंठों में भी हल्की- हल्की सी नमी
बरकरार रह सके
ताकि आँसू टूटकर गालों पर लुढ़के
और उन छातियों को तर करते रहें
जिनके नीचे ही कहीं दिल होता है, धड़कने होती हैं
आत्मा और रौशनी होती है
आँसूओं का टूटना निहायत ही जरुरी है
जरूरी है; ताकि धड़कने जिन्दा रह सकें
सांसें ताउम्र चलती रहें
आत्मा देह की उन तमाम गहराईयों
उन तमाम पीड़ाओं को समझ सके
जो हमारी समझ से दूर, बहुत ही दूर होती जा रही हैं
सचमुच, आँसूओं का टूटना जरुरी है
जिन्दा रहने के लिए, और वक़्त-बेवक़्त मरने के लिए भी।