मूल्य मेरे आँसुओं का
कब जगत पहचान पाया ?
देखता ही तो रहा वह
आँसुओं की धार अपलक,
दो नयन निर्मम लिए बस
स्नेह से हों रिक्त दीपक,
वेदना के स्वर मिलाकर
किस मनुज ने गान गाया ?
कौन है जो सिसकियों का,
मूक आहों का, मरण का,
पंथ सहचर ज़िन्दगी का
मिल गया हो ठीक मन का,
कौन है जिसने हृदय की
उलझनों से त्राण पाया ?
1946