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आँसुओं का रंग / मदन गोपाल लढ़ा


सभी लड़कियाँ
एक सरीखी होती है
रेतीले धोरों की हों
या पहाड़ी प्रदेश की
तटवर्ती इलाके की हों चाहे
मैदानी भाग की
सभी लड़कियाँ एक जैसी होती है।

खुद में सिमटती
चुनरी संभालती
सुन्दर दिखने का
जतन करती
अपने ख्वाबों को
खुद से छुपाती
रोटी बेलती
चुल्हा फँू कती
झाड़ू-पौंछा करती
सैकण्ड की सूई की तरह
अटक-अटक
कर जीती लड़कियाँ
अक्सर अनसुनी कर देती है
अपने अंतस की
सिसकियाँ।

भाषा जुदा है
रंग भी
पहनावा और खानपान भी
एक जैसे नहीं होते
मगर उनके आँसुओं का रंग
एक सरीखा होता है।