आँसुओं की कहकशां पर नाचती मुस्कान है
दीदनी है ये नज़ारा, क्या ख़ुदा की शान है
काँच का मेरा भी घर है पत्थरों के शहर में
उसपे आंच आये न कोई, उसका अब भगवान है
उसकी ख़ातिर हैं खुले, दिल के दरीचे आज भी
बीता कल, यादों के आँगन में मेरा मेहमान है
दर्द सांझा है सभीका, तेरे, मेरा, ग़ैर का
कौन ग़म से किसके ऐसा है कि जो अनजान है
खींचता है क्यों गुनाहों की हमें दलदल में फिर
दोस्त, पहले ही तेरा हम पर बड़ा अहसान है
कौन-सा डर है दिलों में, सहमे-सहमे हैं सभी
दम हैं सब साधे हुए, ख़तरे में सब की जान है
कड़वे सच की घूँट पीकर दिल हुआ ‘देवी’ धुआँ
ये घुटन दिल में दबा रखना कहाँ आसान है