Last modified on 6 मई 2016, at 20:00

आँसुओं से नम लम्हे / ज़ाहिद अबरोल


आँसुओं के नम<ref> आर्द्र</ref> लम्हे<ref>पल,क्षण </ref>
एह्तशाम-ए-ग़म <ref>ग़म का वैभव </ref> लम्हे

जूझती रहीं सदियाँ
कर गए करम <ref>कृपा </ref> लम्हे

काश ये ठहर जायें
और ले लें दम लम्हे

साथ छोड़ देते हैं
चल के दो क़दम लम्हे

बाज़बान<ref>ज़बान रखने वाला </ref> हैं लेकिन
बोलते हैं कम लम्हे

कंपकपाएँ सदियों को
ढायें जब सितम <ref>अत्याचार</ref> लम्हे

रुक भी तो नहीं सकते
ये सबुक क़दम <ref>तेज़ चाल </ref> लम्हे

एक बहते दरिया का
देते हैं भरम लम्हे

ज़िह्न को सियाही<ref>रोशनाई</ref> दें
दिल को दें क़लम लम्हे

कब किसी के होते हैं
संग <ref>पत्थर</ref> के सनम लम्हे

सुस्त रौ<ref>धीमी गति से चलने वाले</ref> हैं क्यूँ ‘ज़ाहिद’
इतने पुख़्त: दम लम्हे<ref>दृढ़, मज़बूत दम वाले </ref>