उच्छवासों की छाया में
पीड़ा के आलिंगन में,
निश्वासों के रोदन में
इच्छाओं के चुम्बन में;
सूने मानस मन्दिर में
सपनों की मुग्ध हँसी में;
आशा के आवाहन में
बीते की चित्रपटी में।
रजनी के अभिसारों में
नक्षत्रों के पहरों में
ऊषा के उपहासों में
मुस्काती सी लहरों में।
उन थकी हुई सोती सी
ज्योत्सना की मृदु पलकों में,
बिखरी उलझी हिलती सी
मलयानिल की अलकों में;
जो बिखर पड़े निर्जन में
निर्भर सपनों के मोती,
मैं ढूँढ रही थी लेकर
धंधली जीवन की ज्योती;
उस सूने पथ में अपने
पैरों की चाप छिपाये,
मेरे नीरव मानस में
वे धीरे धीरे आये!
मेरी मदिरा मधुवाली
आकर सारी लुढका दी,
हँसकर पीड़ा से भर दी
छोटी जीवन की प्याली;
मेरी बिखरी वीणा के
एकत्रित कर तारों को;
टूटे सुख के सपने दे
अब कहते हैं गाने को।
यह मुरझाये फूलों का
फीका सा मुस्काना है,
यह सोती सी पीड़ा को
सपनों से ठुकराना है;
गोधूली के ओठों पर
किरणों का बिखराना है,
यह सूखी पंखड़ियों में
मारुत का इठलाना है।
इस मीठी सी पीड़ा में
डूबा जीवन का प्याला,
लिपटी सी उतराती है
केवल आँसू की माला।