इस पार मिलो प्रिय ! तुम मुझको
उस पार न जाने क्या पाऊँ
इसलिए मिलाकर सुर में सुर
तुम भी गाओ, मैं भी गाऊँ
रोने वालों की कमी नहीं
इस जमघट में बस, हमीं नहीं
बादर गरजे, बिजुरी चमकी
आँसू की रिमझिम थमी नहीं
हम क्यों तड़पे, हम क्यों रोयें
ऊसर में मोती क्यों बोयें
कोमल प्रसून मुस्कानों के
तुम बरसाओ, मैं बरसाऊँ
जो भी भोगी, वह योगी है
योगी भी होता भोगी है
जो भी, जैसे रस-पान करे
वह तृष्णा का ही रोगी है
हम क्यों खोयें, हम क्यों पायें
प्रिय क्यों न वही हम हो जायें
दुनिया को मुँह बिचकाने दो
तुम मुस्काओ, मैं मुस्काऊँ।
जीवन तो मरघट ही मरघट
प्रतिपल फूटे साँसों के घट
वारूणी नहीं जग पी पाता
है किस्मत में केवल तलछट
हम बूँद-बूँद पी जाते है
मस्ती में डूबे गाते हैं
आओ अपनी ही छाया में
तुम सुस्ताओ, मैं सुस्ताऊँ