आँखों से
बहते पानी ने
पलकों से पूछा
मैं खारा क्यों हूँ?
झपकती हुई बोलीं पलकें
सुख-दुख के समन्दर को
खुद में समेट रखा है
हमने
तुम मतवाले हो
मोती बन
हमारी कोर से
लुढ़कते हो ज्योंही
यह सुख-दुःख भी
बारी-बारी
थोड़ा-थोड़ा-सा
उन बूंदों में घुल-मिल
बाहर आ जाता है
यह सुख-दुःख का
समंदर ही
खारा है।