वर्षा कि रिमझिम बूँदें
धरती की प्यास बुझाती।
नदियाँ लहरा-लहरा कर
दुनियाँ की भूख मिटातीं॥
हैं वृक्ष दिया करते फल
नन्हे पौधे सुमनों को।
पर तुम क्या दे पाते हो
सुख गैरों को अपनों को?
जीवन वह ही जीवन है
जो औरों के हित चलता।
आँसू बनता है मोती
जो लिये और के ढलता॥