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आंख मिचौनी/ हरीश भादानी

आंख मिचौनी
खेला करती
किस तलघर जा छिपी
रोशनी
गूंगे अंधियारे ने घेरा
शहरीले जंगल में
मुझको
            
नवम्बर’ 78