Last modified on 14 मार्च 2020, at 09:23

आंदोलन / मधुप मोहता

मेरी भूख उभर आई है
गड्ढे बन मेरे गालों पर।
मेरी प्यास सिमट आई है
पपड़ी बन सूखे अधरों पर।
मेरा दर्द ढलक आया है,
आंसू बन मेरी अलकों पर।

ओ समाज के ठेकेदारों,
ज्वालामुखी फूट जाएगा
और चलो मत अंगारों पर।
मेरा लहू बिखर जाएगा
नारे बनकर दीवारों पर।

(कनु सान्याल के लिए)