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आइये / पंकज सुबीर

आइये मैं आपके तलवे चाट लूँ
आप महान जो हैं
आपकी महानता इससे
शायद कुछ और बढ़े
या शायद न भी बढ़े
किन्तु
मेरी तो नियति है
कि मैं चाटूँ
आपके तलवे
कोई और चारा भी तो नहीं है
इसीलिए
आत्मा नाम की अनदेखी
और कल्पित वस्तु को
फैंकता हूँ कूड़ेदान में
और लो मैं चाटता हूँ
आपके तलवे
क्योंकि मैं नहीं चाहता
फेंका जाना
स्वयं को
किसी कूड़दान में...