स्याह, काले बादल
उतर आते हैं
आईने में
शाम होते-होते उमड़ने लगते हैं
आँखों में
रात के धुंधलके में
फट पड़ते हैं बादल
भीगता है आईना
रात-रात भर
सहरों, सहर बाद
फूटती हैं कुछ कोंपलें
और ढक लेती हैं
अपनी हथेलियों से
आईने को
पर पेड़ हैं कि
उगते जाते हैं
कटते जाते हैं
काले बादल
फिर-फिर आते हैं
आईना भिगोते जाते हैं