पहाडों का सीना चीर
रास्ते के हर पत्थर को
ठोकर मार
यहां तक
जब चली आई है नदी
तो अब क्यों न
हमीं आगे बढ़कर
बांहों में भींच लें इसे
हमीं से मिलने तो आई है यह !
पहाडों का सीना चीर
रास्ते के हर पत्थर को
ठोकर मार
यहां तक
जब चली आई है नदी
तो अब क्यों न
हमीं आगे बढ़कर
बांहों में भींच लें इसे
हमीं से मिलने तो आई है यह !