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आउ नूतन वर्ष / जीवनाथ झा 'विद्याभूषण'

अछि समस्त जनावली अपनेक स्वागत हेतु,
हृदयसँ फहरा रहल अछि शुचि अमल यश-केतु,
कर-कमल अंजलि बनओने
प्रेम सजल सहर्ष,
आउ नूतन वर्ष!
क्रुद्ध वह्निक जे पसाही विश्वभरि धधकैत,
यन्त्र युगमे रिक्तकर के लोक बाँचि सकैत,
मित्र द्वारा कयल पहिनहि
शान्ति नीरक वर्ष
आउ नूतन वर्ष!
ज्ञात अछि सम्प्रति अहाँ जेहि कार्यमे छी लग्न,
सन्तु पन्थानः शिवाः हो बिघ्न सहसा भग्न,
अछि महान विशाल संघक
तीव्रतर संघर्ष
आउ नूतन वर्ष!
अछि प्रवाहित अमल धारा नद-नदीक महान,
तट निकटमे बासिअहुकेँ लभ्य नहि जल पान,
आबि देखू बढ़ल निशिदिन
मर्म वेधी तर्ष
आउ नूतन वर्ष!
करब हम की लय अहाँ केर स्वागतक संभार,
मनहिमे नहि, घरहुमे अछि अन्धकार प्रसार,
बादुरक सम डारि पर
लटकलक कोन विमर्श
आउ नूतन वर्ष!
सुचिरसँ अपनेक ऊपर टकटकी लगबाक
कृषकगण-व्रतपूर्ण हो दु्रत दान कय भगवाक
हयत तखनहि टा अहाँकेर
विश्वभरि उत्कर्ष,
आउ नूतन वर्ष!
भान होयत देखिकेँ हायन! देहातक रंग
नग्न नृत्य करैछ केहन क्रूरताक तरंग,
शान्तिप्रिय अपनहुक मनमे
की न हयत अमर्ष
आउ नूतन वर्ष!
तीव्र वेगेँ जा रहल अछि दानवक दुष्कर्म
एक मात्र अहाँक बल, के आन जनइछ मर्म
भए रहल की नहि अहाँक
महत्त्व केर अपकर्ष?
आउ नूतन वर्ष!