देखो पानी लगा बरसने
सूरज भागा पूँछ दबा के आए बादल हँसने
झींगुर-झिल्ली कीट-पतंगे
जगह देखकर करते दंगे
मोटे ताज़े कई केंचुए
खुले घूमते नंग-धड़ंगे
मेंढक अपनी आवाज़ों के लगे तार फिर कसने
इन्द्रधनुष ने डोरी तानी
खेत हो गए पानी-पानी
ऐसे में सैलानी बगुले
खूब कर रहे हैं मनमानी
जले जेठ का दुख कीचड़ में गिरा दिया सारस ने
गर्मी का भीषण युग बीता
वहाँ लगा पर्जन्य पलीता
गरजी महातोप जलधर की
ऋतुविस्तार तड़िस्संगीता
दफ़्तर में बैठे बाबू भी मन में लगे तरसने ।
2000