सुरीली सारंगी अतुल रस-धारा उगल के कहीं खोई जो थी, बढ़ कर उठाया लहर में, बजाते ही पाया, बज कर यही तार सब को बहा ले जाएँगे, भनक पड़ जाए तनिक तो ।