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आकांक्षा / नंदकिशोर आचार्य


एक अतीत रक्त की भाँति
प्रवाहित रहता है मुझ में
एक भविष्य ने साँसों की तरह
बाँध रखा है मुझे
और मैं-घड़ी की सुई
भविष्य के अतीत में बदलने की
सूचना मात्र देता रह जाता हूँ।

क्या कभी नहीं हो सकता यह
कि एक पल के लिए ही सही
अतीत और भविष्य
मुझ में न मिल पायें
और तब मैं
मेरा सहारा लेने के लिए हाथ फैलाते
भयभीत ईश्वर
और मृत्यु को
शून्य में छटपटाते हूए
देख लूँ !

(1968)