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आकाश / श्रीप्रसाद

नीली चादर-सा फैला है
इसे नहीं छू पाओगे
लेकिन इस खाली गोले की
सभी जगह तुम पाओगे

जब सूरज पूरब में आता
लाल रंग रँग जाता है
और शाम को जैसे सोना
पश्चिम में लहराता है

तारों से आकाश भरा है
चाँद चमकता आकर के
सूरज हर दिन मुसकाता है
किरण-किरण बिखरा करके

आसमान में चिड़ियाँ उड़कर
दूर कहाँ तक जाती हैं
चलती हवा हमेशा गुमसुम
और आँधियाँ आती हैं

बादल आ आकाश गोद में
जल ही जल बरसाता है
इंद्रधनुष सातों रंगों को
खिलखिलाकर बिखराता है

सूरज की रोशनी चमककर
इसको करती है नीला
मगर रात में कब रहता है
दिन के जैसा चमकीला।