सूना आकाश
चीरते हुए उड़ता चला गया
पाखी
चिह्न तक बाक़ी नहीं कोई
कोई यह ज़रा
आकाश से पूछे-
उस पर क्या गुज़रती है
पाखी के उड़ जाने
अपने सूनेपन के
चिर जाने से
सूना आकाश
चीरते हुए उड़ता चला गया
पाखी
चिह्न तक बाक़ी नहीं कोई
कोई यह ज़रा
आकाश से पूछे-
उस पर क्या गुज़रती है
पाखी के उड़ जाने
अपने सूनेपन के
चिर जाने से