मैं
अपने ज़ेहन के
कुएँ में हूँ
दीवारों पर
जगह-जगह
सिर्फ़ तस्वीरें हैं
जो
कभी ग़ायब हो रही हैं
तो कभी टँग जाती हैं कीलों पर
हवा का एक झोंका
खींच लाया मुझे यहां
एक हथौड़े ने धकेल दिया मुझे भीतर
सब कुछ मनभावन है
अहसास देह में ढल गए हैं
प्रेम एक घोड़ा है
जो दौड़ रहा है
मेरी देह में
सिर्फ़ आवाज़ें बची हैं पीछे
जो दूर जा रही हैं तेज़ी से...
नष्टप्राय, अवाक्, इस जगह।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणिमोहन मेहता’