Last modified on 17 मई 2022, at 00:24

आगइले बसंत भइले / हरिवंश प्रभात

आगइले बसंत भइले हरियर कियारी,
खेतवा से फुदके, चिरइयां बारी-बारी।

सरसों फुलाई गइले महके धरतिया,
महुआ से टपके मदन सारी रतिया,
कुहुके कोयल अमवा डारी-डारी।
आगइले बसंत भइले....

मंद-मंद चले हवा मनवां बौराये,
गेहुम के बाली झूमें चना गदराये,
ठोरवा पजावे सुगा टिकोरवा निहारी।
आगइले बसंत भइले....

बीत गइले जाड़ा आउ गरमी भी दूर बा,
चारों और गीत आउ संगीत भरपूर बा,
नदिया में पपीहा बइठल धारी-धारी।
आगइले बसंत भइले....

सरसों के फुलवा हई पियर चुनरिया,
जइसे सज अंगना में नाचेली पुतरिया,
अंचरा लहर मारे घूमे आरी-आरी।
आगइले बसंत भइले....