Last modified on 20 मई 2008, at 19:19

आगाज़ अगर हो / रामकुमार कृषक

आगाज़ अगर हो तो अंजाम तलक पहुँचें

कुछ इल्म मयस्सर हो,इहलाम तलक पहुँचें


सरनाम बस्तियों में दरिया नहीं है कोई

दरिया-ए-दिल मिलेंगे बेनाम तलक पहुँचें


रिंदों में सूफि़याना कुछ ढोंग भले कर लें

महफि़ल हो सूफि़यों की हम जाम तलक पहुँचें


तलाश नए घर की भटके हुए नहीं हैं

यह बात दूसरी है हम शाम तलक पहुँचें


केवल कहानियाँ ही कुर्बानियाँ नहीं हैं

पैग़ाम जिएँ मिटकर पैग़ाम तलक पहुँचें