कुछ नहीं होता आगामी सूचना बगैर
सिर्फ आप हैं जो जान नहीं पाते
किस दिन छूट जायेगा
प्रिय शहर, अदभुत रिश्ता, जीवन का कोई अंतिम सत्य
ऐसे दिन
एक एक करके
मन में बुझता है बहुत कुछ
ठंडे पड़ गए कोयलों की तरह
उस दिन आप करते हैं बहुत कुछ बेमानी
ढेरों परिचितों को कर डालते हैं फोन
बेमतलब बतियाते हैं उनसे, चहकते हुए
किसी चायखाने में अकेले बैठे
कई प्याले पीते हैं गाढ़ी और गन्दी चाय
वेटर से पूछते हैं घर परिवार का हाल
उसे देते हैं पहले से कहीं ज्यादा टिप
आप मेज़ थपथपाते हैं
और कहते हैं कुछ भी हो जाये
नहीं पियूँगा शराब
मैं कोई बच्चा नहीं हूँ
सुलझा सकता हूँ जो भी हुआ है गलतमलत
उस दिन आँख बचाकर
आप काफी समय बिताते हैं
इंटरनेट पर खोजबीन में:
पढते हैं अपनी जनमराशी पर
प्रसिद्ध ज्योत्शिओं के लिखे वार्षिक भविश्यफल
खोल लेते हैं विदेश मैं बैठी पुरानी प्रेमिका से हुआ
फेसबुक वार्तालाप
गौर से पड़ते हैं अजनबी शहरों के नक्शे
उन में उपलब्ध अनेकों नौकरियाँ
आप उलझा लेते हैं मन को
सस्ते टिकट खरीदने के जंजाल में
एक बार तो होता है भ्रम
कि खालीपन में है बहुत खुलापन
अँधेरा घिरते घिरते
सब इरादे होते हैं चकनाचूर
और सिरहाने में सर देकर
आप सोचते हैं
फिर से मिला जीवन तो
जीऊँगा उसे ढंग से