आगे तौ कींन्हीं लगालगी लोयन, कैसे छिपै अजँ जो छिपावति।
तू अनुराग को सोध कियो, ब्रज की बनिता सब यौं ठहरावति॥
कौन सँकोच रह्यो है 'नेवाज, जो तू तरसै औ उन्हैं तरसावति।
बावरी जो पै कलंक लग्यो, तौ निसंक ह्वै काहे न अंक लगावति॥
सुनती हौ कहा, भजि जाहु घरै, बिंधि जाहुगी मैन के बानन में।
यह बंसी 'नेवाज भरी विष सों, विष सो बगरावति प्रानन में॥
अबहीं सुधि भूलिहौ मेरी भटू, भभरौ जनि मीठी सी तानन में।
कुलकानि जो आपनी राखी चहौ, दै रहौ ऍंगुरी दोऊ कानन में॥
देखि हमैं सब आपुस मैं, जो कछू मन भावै सोई कहती हैं।
ऐ घरहाई लोगाई सबै, निसि द्यौस 'नेवाज हमें दहती हैं॥
बातैं चबाव भरी सुनि कै, रिसि आवति पै, चुप ह्वै रहती हैं।
कान्ह पियारे तिहारे लिए, सिगरे ब्रज को हँसिबो सहती हैं॥